Thursday, February 17, 2011

Power Of Planets

ग्रहो का बल - Power Of Planets
 
किसी भी ग्रह का बल जानने के लिए यह आवश्यक है कि वो ग्रह अस्त, नीचस्थ (Debilitated) (वक्री न हो), शत्रु राशी (Zodiac Sign Of Enemy) में स्थित, तृतीय सहित त्रिक भावस्थ (6,8,12 एंव 3), शत्रु ग्रह (Malefic Planets) द्वारा युक्त एंव दृष्ट न हो तभी उस ग्रह के बल का विचार करना चाहिये. शास्त्रीय अनुमोदन एंव अब तक की परम्परा के अनुसार ग्रहो का बल षडबल के नाम से जाना जाता है, फिलहाल हम इसी को केन्द्र में रख कर इस पर चर्चा करेंगे. ये छः बल है, नैसर्गिक बल (Natural Power), कालबल (Kal Bal), स्थान बल (Sthan Bal), दिग्बल (Dig Bal), दृग्बल (Drig Bal), और चेष्टाबल (Chesta Bal).
 
किसी भी ग्रह का बल जानने के लिए यह आवश्यक है कि वो ग्रह अस्त, नीचस्थ (Debilitated) (वक्री न हो), शत्रु राशी (Zodiac Sign Of Enemy) में स्थित, तृतीय सहित त्रिक भावस्थ (6,8,12 एंव 3), शत्रु ग्रह (Malefic Planets) द्वारा युक्त एंव दृष्ट न हो तभी उस ग्रह के बल का विचार करना चाहिये. शास्त्रीय अनुमोदन एंव अब तक की परम्परा के अनुसार ग्रहो का बल षडबल के नाम से जाना जाता है, फिलहाल हम इसी को केन्द्र में रख कर इस पर चर्चा करेंगे. ये छः बल है, नैसर्गिक बल (Natural Power), कालबल (Kal Bal), स्थान बल (Sthan Bal), दिग्बल (Dig Bal), दृग्बल (Drig Bal), और चेष्टाबल (Chesta Bal) .
  1. नैसर्गिक बल (Natural Power) :- प्रायः सभी ज्योतिष ग्रन्थो में शनि से अधिक मंगल, मंगल से अधिक बुध, बुध से अधिक गुरु, गुरु से अधिक शुक्र, शुक्र से अधिक चन्द्रमा तथा सबसे अधिक सूर्य को बलवान माना गया है. ऎसी मान्यता है यदि सूर्य ग्रह बलवान (उच्चस्थ, दिग्बली) हो तो अन्य ग्रहो के निर्बल होने से जो दोष होता है एक अकेला सूर्य उसकी भरपाई कर देता है.
  2. कालबल (Kal Bal) :- सूर्य, मंगल व गुरु दिन में, चन्द्रमा शुक्र व शनि रात्रि में तथा बुध सदैव बली माने गये है.
  3. स्थान बल (Sthan Bal) :- जब ग्रह अपनी स्वराशी, मूलत्रिकोण राशी (Triagular Sign), उच्च राशी (Exalted Sign) या मित्र राशी में स्थित हो तो वह स्थान बली कहलाता है.
  4. दिग्बल (Dig Bal) :- बुध व गुरु के लग्न में होने पर चन्द्रमा व शुक्र के चतुर्थ भाव में, शनि के सप्तम तथा सूर्य व मंगल के दशम भाव में होने पर ग्रह दिग्बली कहलाता है.
  5. दृग्बल (Drig Bal) :- शुभ (मित्र) ग्रहो से दृष्ट होने पर ग्रह दृग्बली कहलाता है.
  6. चेष्टाबल (Chesta Bal) :- सूर्य व चन्द्रमा उत्तरायण में तथा अन्य ग्रह चन्द्रमा के साथ युति बनाने पर चेष्टाबली होते हैं.
षडबल (Shad Bal) की चर्चा ज्योतिष ग्रन्थो को आधार मानकर दी गई है. परन्तु व्यवहारिक रुप से ऎसी कई बातो को या तो नजरअन्दाज किया गया है या उनका सही तरीके से ज्योतिष में समावेश नही किया गया है जैसे कि वक्री होने पर ग्रह बलवान हो जाते हैं. 10 अंशो से 20 अंशो तक ग्रह बलवान रहता है इत्यादि - 2. ज्ञान में सदा से ही सुधार की गुंजाइश (सम्भावना) रही है. प्राचीन ऋषियो ने जिस परिश्रम के साथ ज्योतिष के ज्ञान को मानव जाती को देकर कृतार्थ किया है तो इस प्राचीन अमूल्य घरोहर को नित नये अन्वेषण द्वारा आगे बढाने का कर्तव्य ज्योतिर्वेदो का बनता है. ज्योतिष केवल धन कमाने का व्यापार मात्र नही है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से समय का ज्ञान (Past, Present, and Future) केवल इसी विद्या द्वारा सम्भव है.

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Tuesday, February 15, 2011

Nakshatra-An Introduction

नक्षत्र परिचय
 
जो अपने क्षेत्र से हटते नहीं, उसे नक्षत्र कहते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी की दूरी को किलोमीटर या मील में नापा जाता है, ठीक उसी प्रकार सौरमंडल के ग्रहों की दूरियों को नक्षत्र के जरिए नापा जाता है। पृथ्वी सहित सौरमंडल के अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा का मार्ग अंडाकार पट्टे के समान है, जिसे कांति प्रदेश या भ्रमण-चक्र कहते हैं। यह असंख्य ताराओं का समूह है, जिनका स्वयं का प्रकाश होता है। ये एक विशेष आकृति लिए टिमटिमाते हैं। ये नक्षत्र कहलाते हैं।
नक्षत्र के नाम
इनकी विशेष आकृतियों के आधार पर ही इनके नाम रखे गए हैं :
अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृग, आद्री, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा, रेवती। अभिजीत को 28वाँ नक्षत्र माना गया है। उत्तराषाढ़ा की आखिरी 15 घटियाँ और श्रवण के प्रारंभ की चार घटियाँ इस प्रकार यह 19 घटियों वाला अभिजीत नक्षत्र कहलाता है। यह समस्त कार्यों के लिए शुभ माना गया है। भ्रमण-चक्र 360 अंश का होता है, जिसे 27 भागों में बाँटा गया है। जिसका एक भाग 13 अंश 33 कला का होता है जो एक नक्षत्र कहलाता है। प्रत्येक नक्षत्र का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है, जिसे समान चार चरणों में 3 अंश 33 कला पर विभक्त करने पर 3 अंश 33 कला को नक्षत्र का एक चरण कहते हैं। अर्थात 3 अंश 33 कला के चार भागों का एक संपूर्ण नक्षत्र होता है।
स्थापत्य वेद में नक्षत्रों का महत्व
जिस समय जातक का जन्म होता है, उस समय के नक्षत्र का प्रभाव जातक के जीवनपर्यंत रहता है। इस नक्षत्र के स्वभाव, गुण, आकृति के अनुसार जातक का चेहरा, स्वभाव एवं व्यवसाय आदि का निर्धारण होता है। भवन-नियोजन एवं निर्माण भी इसी तरह किया जाना चाहिए कि जातक के नक्षत्र के अनुसार शुभ एवं अनुकूल हो। इसलिए भवन का निर्माण करते समय भूमि का चयन, भूमि-पूजन, मुख्य द्वार का निर्धारण, रंगों का नियोजन, गृह प्रवेश आदि कार्य नक्षत्र के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
महादशा
जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होगा, उस नक्षत्र स्वामी की महादशा जन्म के समय होती है। महादशा काल में जातक की जिस ग्रह की महादशा चलती है, उसे जन्म समय की महादशा माना गया है, जिसके अनुसार जातक की उम्र 120 वर्ष मानी गई है। नक्षत्र स्वामी की ग्रह जन्म-पत्रिका की स्थिति के अनुसार उसके शुभ एवं अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।

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